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ग्रीष्म ऋतु में हमारा खान-पान

ग्रीष्म ऋतु में हमारा खान-पान

ऋषियों-मनीषियों, धर्म-ग्रंथों व शास्त्रों ने मानव तन को अत्यंत श्रेष्ठ और महान बताया है, जिसका उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है। पर इसके लिए अच्छे स्वास्थ्य का होना भी बहुत जरूरी है। आचार्य चरक लिखते हैं- ‘धर्मार्थ काम मोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम्’ अर्थात् धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि पुरुषार्थों का मूल आरोग्यता ही है।

निरोग रहने के लिए ऋतुओं के अनुसार खान-पान होना आवश्यक है। यदि आप ऋतुओं के अनुसार सही भोजन का चुनाव करते हैं, तो अनेक मौसमी बीमारियों से अपना बचाव कर सकते हैं। आयुर्वेद के आचायों ने आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णित किया है कि 6 विभिन्न ऋतुओं में हमारा आहार कैसा होना चाहिए! चूँकि अब ग्रीष्म ऋतु का आगमन हुआ है, इसलिए इस लेख में हम उसी से संबंधित जानकारी पर प्रकाश डालेंगे।

ग्रीष्म ऋतु में खान-पान

  • इस ऋतु में सूर्य बहुत तेज़ चमकता है। साथ ही, इसकी किरणें धरती पर सीधी पड़ती हैं। गर्म लू प्राणी जगत को नुकसान पहुँचाती है एवं तरलता को खत्म कर देती है। इसलिए इस ऋतु में अधिकाधिक पानी पीना चाहिए। सुबह उठते ही सबसे पहले जमीन पर बैठकर घूँट घूँट कर पानी पीना चाहिए। अगर आप गटागट पानी पीते हैं, तो पानी में मुँह की लार नहीं मिलती और पानी देर से हज़म होता है। फ्रिज की बजाय घड़े के पानी का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि फ्रिज का पानी शरीर की गर्मी बढ़ाता है। वहीं घड़े का पानी शरीर को ठंडक पहुँचाता है।
  • गर्मी के मौसम में सेहत सही रखने के लिए एवं कमजोरी दूर करने के लिए ठंडी तासीर की तरल चीजें जैसे मट्ठा, दही, शिकंजी, आम पन्ना, लस्सी, सत्तू, शर्बत आदि का सेवन करना चाहिए।
  • आम लोगों की धारणा होती है कि ठंडी चीजें जैसे आइसक्रीम, बर्फ या फ्रिज का पानी हमें ठंडक पहुँचाते हैं। परंतु वास्तविकता इससे बिल्कुल भिन्न है। दरअसल, ठंडी प्रतीत होने वाली इन चीजों की तासीर गर्म होती है। इस कारण ये हमारे पेट की गर्मी को बढ़ा देती हैं।
  • गर्मी में घी, दूध एवं चावलों का प्रयोग अधिक करना चाहिए।
  • कच्चे आम का प्रयोग भी सेहत के लिए हितकारी होता है।
  • इस ऋतु में केवड़ा, गुलाब, खस, गुलकंद, किशमिश, संतरा, अनार, नींबू, गन्ने का रस, खीरा, खरबूजा, तरबूज, शहतूत आदि तथा अन्य रसदार फलों का सेवन करना चाहिए।
  • इस मौसम में मूँग, मसूर आदि हल्की एवं सुपाच्य दालों का सेवन करना चाहिए।
  • गर्मी में हमारी जठराग्नि मंद हो जाती है। इसलिए गरिष्ठ एवं तले पदार्थ हजम नहीं होते। अगर कोई इनका सेवन करता है, तो उसके पाचन तंत्र पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए इन दिनों में तेज मिर्च मसाले, नमकीन, बेसन- मैदे से बने पदार्थ, तली चीजें, बैंगन, अरहर व साबुत उड़द की दाल का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • गर्मी के मौसम में कभी भी भूख व प्यास के वेग को रोकना नहीं चाहिए। साथ ही, आवश्यकता से कम भोजन करना चाहिए।
  • धूप से आने या पसीने से तर-बतर होने पर तुरंत पानी पीना सेहत के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध हो सकता है।

आयुर्वेदिक औषधियाँ

  • ग्रीष्म ऋतु में पसीना भी बहुत आता है, जिसके कारण कमजोरी हो जाती है। ऐसी अवस्था में, सुबह उठते ही 2-3 चम्मच ऐलोवेरा रस खाली पेट लेना चाहिए।
  • जिन लोगों में खून की कमी है, वे दही में अग्निमुख चूर्ण एवं मंडूर भस्म मिलाकर खाएँ, तो शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी रहती है। खून की कमी भी दूर हो जाती है।
  • जिन लोगों को भूख कम लगती है, वे दही में क्षुधावर्धक चूर्ण स्वादानुसार मिला कर खाएँ ।

नोट- ब्लड प्रेशर के मरीजों को किसी भी चूर्ण या अन्य औषधियों का सेवन चिकित्सक के परामर्श से ही करना चाहिए। इसके अलावा गर्भवती महिलाएँ भी ऐलोवेरा जूस का सेवन चिकित्सक की सलाह से ही करें।

गर्मियों में भोजन के दौरान पानी कैसे और कितना पीना चाहिए ?

भोजन के दौरान बिल्कुल भी पानी न पीना व बहुत ज्यादा पानी पीना दोनों ही स्थितियों में भोजन सही तरीके से नहीं पचता । भोजन करते समय ज्यादा पानी पीने से पाचक रस पतले हो जाते हैं और भोजन सही तरीके से नहीं पचता | अगर भोजन के बीच बिल्कुल भी पानी न पिया जाए, तो पाचक रस भोजन में अच्छी तरह मिल नहीं पाते। इस कारण फिर पाचन सही ढंग से नहीं हो पाता । फिर इसका उपाय क्या है? इसका उपचार है कि भोजन के दौरान एक-दो घूँट पानी जठराग्नि को जलाकर रखता है, जो निरोग रहने का सही मापदंड है। अगर भोजन से ठीक पहले पानी पी लिया जाए, तो वह जठराग्नि को मंद कर देता है, जिसके कारण शरीर में कमजोरी आ जाती है। इसी प्रकार भोजन के अंत में यदि अधिक मात्रा में जल ग्रहण किया जाए, तो वह शरीर में स्थूलता एवं कफ पैदा करता है। इसलिए भोजन के बीच में 1-2 घूँट पानी पी लेना चाहिए। इससे धातुओं का सही तालमेल बना रहता है। यही नहीं, ऐसा करने से भोजन अच्छी तरह पच भी जाता है।