Divya Gyan Prakash (Hindi)
₹40.00
वस्तुतः समस्त जगत एवं व्यक्तिगत सुख-शांति, प्रगति व समृद्धि का एक मात्रा आधर धर्म ही है। मानव में यह तत्त्व समाविष्ट रहे, इसके लिए धर्म का अवलम्बन जरुरी है और धर्मिकता का अवलम्बन कभी घाटे का सौदा नहीं रहा और न रहेगा। मानव जाति की प्रगति धर्म के कारण ही संभव हो सकती है। जब-जब भी मानव धर्म से पिछड़ा, ध्र्म को न समझते हुए अधर्म के मार्ग पर चला। तब-तब मानव जाति का विनाश हुआ। मनुष्य जीवन की स्थिरता धर्मिक सिद्धांतों पर ही टिकी हुई है। अतः समाज का अस्तित्त्व तब ही खतरे में पड़ता है जब उसके पीछे अधर्मिकता और अनैतिकता होती है। किसी भी समय में मानवीय एकता एवं अखंडता के लिए मुख्य जरुरत है धर्म की।

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