Hum or Hamare Aradhya Bhagwan Shiv
वास्तव में, हमारी भक्ति का फल तो स्वयं भगवान शिव ही हैं। यदि वे मिल जाएँ तो समझो सभी पूजा-पाठ सफल हो गया। परन्तु यक्षप्रश्न तो यही है कि हमारे आराध्य भगवान भोलेनाथ का दर्शन हमें कहाँ हो!
इस गहन तथ्य को हम बड़े ही सहज रूप से एक प्रसिद्ध शिव-स्तुति से समझ सकते हैं-
ऊँ कर्पूरगौरं करुणावतारं संसार सारम् भुजगेन्द्रहारं
सदा वसंतम् हृदयारविन्दे भवं भवानि सहितम् नमामि।
वे भगवान शिव, जिनका वर्ण कपूर की तरह गौर है अर्थात् जो प्रकाशरूप हैं, करूणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं, सर्पों के हार पहनते हैं, जो सभी हृदयों में सदा निवास करते हैं- उन्हीं को मैं माँ भवानी सहित नमन करता हूँ।
जैसा कि इसमें स्पष्ट लिखा है- ‘जो सदा हृदय में वास करते हैं, उन भगवान शिव को मैं नमन करता हूँ।’ अतः अब दूसरा यक्षप्रश्न यह उठता है कि जो भगवान शिव हमारे हृदय में सदा-सदा निवास करते हैं, उन्हें हम आज तक क्यों नहीं देख पाए? उनका दर्शन कैसे हो? आइए, इसी तथ्य पर अब हम चर्चा करते हैं... ...!

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